1. सेशन न्यायालय में ट्रायल के क्या चरण होते हैं?

कुछ निश्चित प्रकार के अपराध केवल सेशन न्यायालय द्वारा विचारणीय है। एक बार मजिस्ट्रेट मामले को सेशन न्यायालय को प्रतिबद्ध कर दे, सेशन न्यायालय वास्तविक ट्रायल को संचालित करेगा।
चरण-1- अभियोजन द्वारा प्रारंम्भिक केसः- ऐसी ट्रायल में अभियोजन को सबसे पहले अपना केस खोलना पड़ेगा व एक भी आरोप को विरचित करने से पूर्व उन्हें आरोप का वर्णन आपके सामने करना होता है एवं संक्षिप्त में आपके विरूद्ध इकट्ठे किये गये प्रमाण को बताना होता है।
चरण-2- आरोपी को दोषमुक्त करना- अभियोजन को सुनने के पश्चात् न्यायालय आपको अपना पक्ष रखने की अनुमति देगा। वह रखे गए तर्क एवं इकट्ठा की गयी सामग्री को विचार में लेगा। यह एक विस्तृत जांच नहीं है। यदि न्यायालय को यह लगे कि आपके विरूद्ध मामला आधारहीन है तो वह आपको दोषमुक्त घोषित करेगा।
चरण-3- आरोप निर्धारणः- सेशन न्यायलय आपके विरूद्ध आरोप (चार्ज) विरचित करेगा एवं आपसे यह पूछेगा कि क्या आप दोष स्वीकारते हैं। यदि सेशन न्यायालय को यह पता चले कि अपराध उतना गम्भीर नहीं है एवं एक मजिस्ट्रेट भी इस मामले में सुनवाई कर सकता है तो वह केस मजिस्ट्रेट को स्थानान्तरण करने का निर्णय ले सकता है।
चरण-4- अभियोजन साक्ष्यः- यदि आप आरोप अस्वीकार करते हैं तो सेशन न्यायलय अभियोजन को अपने गवाह परीक्षित करने एवं अन्य प्रमाण पेश करते हुए आगे बढ़ेगा। आपका अधिवक्ता अभियुक्त गवाहों का प्रति परीक्षण कर सकता है।
चरण-5- दोषमुक्ति। बरी- इस चरण पर सेशन न्यायालय आपको बरी कर सकता है। यदि उसे प्रतीत हो कि आपके विरूद्ध प्रमाण अपर्याप्त हैं।
चरण-6- बचाव साक्ष्यः- यदि आप दोषमुक्त नहीं किए गए हैं, सेशन न्यायालय आपको एवं आपके अधिवक्ता अपने गवाह एवं प्रमाण को परीक्षण हेतु अवसर देगा।
चरण-7- अंतिम जिरह एवं निर्णयः- अभियोजन एवं बचाव पक्ष के अंतिम तर्क बनाने के पश्चात् सेशन न्यायालय यह निर्णय लेगा कि आप दोषी हैं या बेगुनाह हैं।

2. मजिस्ट्रेट के समक्ष वारंट केस में क्या चरण होते हैं?

1- ऐसी ट्रायल में मजिस्ट्रेट को यह सुनिश्चित करना होता है कि आपको आरोप पत्र, एफआईआर एवं संबंधित दस्तावेज प्राप्त हो चुके हैं।
2- आरोपी को दोषमुक्त करनाः- मजिस्ट्रेट निर्णय लेगा कि क्या आपको पुलिस द्वारा पेश आरोप पत्र आपके परीक्षण एवं संबंधी दस्तावेजों के आधार पर दोषमुक्त किया जा सकता है।
3- आरोप निर्धारणः- मजिस्ट्रेट आपके विरूद्ध आरोप विरचित करेगा एवं आपसे पूछेगा कि यदि आपको आरोप स्वीकार है।
4- अभियुक्त साक्ष्यः- यदि आप आरोप अस्वीकार करते हैं, मजिस्ट्रेट अभियोजन को अपने गवाह परीक्षित करने एवं अन्य प्रमाण प्रस्तुत करने का अवसर देगा । आपके अधिवक्ता अभियुक्त गवाहों को प्रति परीक्षित कर सकते हैं।
5- बचाव साक्ष्यः- तत्पश्चात् मजिस्ट्रेट आपको एवं आपके अधिवक्ता को अपने गवाहों को परीक्षित करने का एवं आपके द्वारा एकत्र किए गए प्रमाण को प्रस्तुत करने का अवसर देगा।
6- निर्णयः- मजिस्ट्रेट फिर यह निर्णय लेगा कि आप दोषी हैं अथवा निर्दोष हैं।

3. मजिस्ट्रेट के समक्ष ‘समन केस’ के विचारण के क्या चरण हैं?

1- जब आप ट्रायल के प्रारम्भ में मजिस्ट्रेट के समक्ष प्रस्तुत किये जाते हैं, मजिस्ट्रेट आपके उपर आरोपित अपराध का विस्तृत विवरण देगा एवं आपसे पूछेगा कि यदि आप आरोप स्वीकार करते हैं अथवा नहीं। आपको सुनने के पश्चात् मजिस्ट्रेट केस को आगे नहीं बढ़ाने का निर्णय भी ले सकता है। यदि मजिस्ट्रेट आगे बढ़ने का निर्णय ले, वह नोटिस विरचित करेगा जो एक ‘चार्ज’ जैसे ही होता है I छोटे मामलों में आप न्यायालय में उपस्थित हुए बिना ही आरोप स्वीकार कर सकते हैं मजिस्ट्रेट आपको एक जुर्माना देने को कहेगा
2- अभियोजन एवं बचाव साक्ष्यः- यदि आप आरोप अस्वीकार करते हैं, मजिस्ट्रेट उसके पश्चात् अभियोजन एवं आपके अधिवक्ता को गवाहों का परीक्षण करने देगा एवं सबूत प्रस्तुत करने देगा।
3- निर्णयः- मजिस्ट्रेट निर्णय लेगा कि आप दोषी हैं अथवा नहीं।

4. ‘समरी ट्रायल’ क्या है एवं इसकी विचारण प्रक्रिया कैसे अलग है?

यह ट्रायल प्रव्यि कुछ निश्चित प्रकार के सामान्य अपराध के मामलों में लागू होती है जिससे कि ट्रायल शीघ्र संचालित हो जाए। यहॉं प्रक्रिया ‘समन केस’ जैसे ही हैं, बस मजिस्ट्रेट को यह सुनिश्चित करना होता है कि मामले संबंधी सिर्फ कुछ महत्वपूर्ण सुक्ष्मताएं ही रिकार्ड की जायें। कुछ वरिष्ठ मजिस्ट्रेट को इस प्रक्रिया का पालन करने का स्वविवेक चयन करने का अधिकार है। कुछ सूक्ष्मताएं जिन्हें रिकार्ड करना होता है वह है शिकायत या रिपोर्ट में उल्लेखित अपराध एवं वह अपराध हो साबित हुआ है, मजिस्ट्रेट द्वारा पारित दण्डादेश एवं कार्यवाही की अंतिम तिथि।

5. क्या मजिस्ट्रेट किसी भी मामले में ‘समरी ट्रायल’ की प्रक्रिया का उपयोग कर सकता है?

नहीं, मजिस्ट्रेट सिर्फ निम्नलिखित मामलों में यह प्रक्रिया अपना सकता हैः-
ए- दो वर्ष के कारावास से कम दण्डनीय अपराध
बी- कुछ निश्चित प्रकार की चोरी
सी- चुराई हुई सम्पत्ति छुपाना अथवा रखना-2000 रूपये से कम रूपये।
डी- कुछ प्रकार के घर भेदने वाले अपराध
ई- सार्वजनिक अशांति फैलाने के उद्देश्य से किसी की बेइज्जति करना
एफ- किसी को धमकी देना।
जी- किसी को उपरोक्त अपराध कारित करने में मदद करना।
एच- इन अपराधों को कारित करने का प्रयास करना (परन्तु सफल न होना)
यदि आप ऐसे अपराध में आरोपित हें जो भारतीय दण्ड संहिता में उल्लेखित नहीं है तो उस कानून को पढ़ें एवं अपने अधिवक्ता से राय लें कि ‘समरी प्रक्रिया’ की संभावना है या नहीं। उदाहरण के लिए परक्राम्य लिखत अधिनियम, 1881 जिसके अंतर्गत चैक-अनादरण एक अपराध है में ‘समरी ट्रायल’ की अनुमति है।