Meaning


The information regarding commission of an offense has to be entered in a book available with the police. The information so recorded is called First Information Report i.e. F.I.R. It is an information to the police station at first in point of time that an offense has been committed and on the basis of which the investigation is commenced. Vague, cryptic and indefinite telephonic information cannot be treated as F.I.R. But it need not be an encyclopedia containing every minute detail of the offense (Manoj v. State of Maharashtra (JT 1999 (2) SC 58).
FIR का पूरा मतलब है First Information Report जिसे हिंदी में हम प्रथम सूचना रिपोर्ट के नाम से जानते है और किसी अपराध की सूचना समबधित पुलिस विभाग को देने के लिए सबसे पहला कदम यही होता है हमे उसके लिए प्राथमिकी दर्ज करवानी होती है |

कौन दर्ज करवा सकता है – FIR कोई भी वो व्यक्ति दर्ज करवा सकता है जो या तो किसी अपराध का शिकार हुआ हो या फिर उसने अपराध को होते हुए अपनी आँखों से देखा हो या फिर वो कोई भी व्यक्ति जिसे उस अपराध के बारे में जानकारी हो |
क्यों दर्ज करें – FIR किसी भी अपराध के लिए पहला कदम है जिस से कि गुनहगार को सजा दिलवाने का step शुरू किया जा सके और अगर मामला चोरी से या डकेती से जुड़ा है उस समय में ये जरुरी हो जाता है की आप उसके लिए कायदे से FIR दर्ज करवाएं ताकि उस प्रॉपर्टी से जुड़ी insurance राशी आप प्राप्त कर सके in case ऐसा होता है कि आपकी प्रॉपर्टी या सामान का किसी अपराध में misuse किया जाता है ऐसी स्थिति में पुलिस को FIR के माध्यम से अवगत करवाकर आप अपनी जिम्मेदारी से हाथ धो सकते है जैसे कि अगर आपका मोबाइल खो जाता है तो ये जरुरी है कि आप अपनी सुरक्षा के लिए ये करें क्योंकि ऐसे में आपके मोबाइल के misuse होने की दशा में होने वाली परेशानियाँ कम हो जाती है |
किस तरह के अपराध के लिए FIR – पुलिस ऐसे अपराधो के लिए FIR दर्ज करती है जो पहली नजर में संज्ञेय अपराधों (cognizable offences ) कि श्रेणी में आते हो और उनमे बिना वारंट अपराधी को गिरफ्तार कर सकती है | उदाहरण के लिए ये अपराध इस श्रेणी में आते है -हत्या ,बलात्कार ,चोरी और किसी पर हमला (murder, rape, theft, attack, etc.) इत्यादि  इन मामलो में पुलिस बिना किसी वारंट के अपराधी को गिरफ्तार कर सकती है | ऐसे मामले जो इस श्रेणी में नहीं आते जैसे कि  bigamy or defamation (द्विविवाह या मानहानि) in मामलो में पुलिस बिना वारंट के किसी को गिरफ्तार नहीं कर सकती है इसलिए वो FIR भी दर्ज नहीं करती है और न्यायिक मजिस्ट्रेट के पास शिकायत को भेज देती है आगे की कार्यवाही के लिए |
कब किया जाता है – FIR को घटना या अपराध के तुरंत बाद या जितने कम से कम समय में हो सके दर्ज करवाया जाना आवश्यक है और अगर इसमें देरी हुई है तो आपको पर्याप्त सपष्टीकरण देना भी आवश्यक हो जाता है क्योंकि जितनी अधिक देर से आप FIR दर्ज करवाते है उतना ही आप संदेह के दायरे में आ सकते है और कुछ सर्बेक्षण की माने तो ऐसे cases में कहानी मनगढ़ंत या जानबूझकर की गयी एक साजिश हो सकती है |
कंहा दर्ज करवा सकते है FIR – वैसे तो in general FIR अपराध या घटनास्थल के दायरे में थानाक्षेत्र में आने वाले  थाना में दर्ज करवाई जा सकती है | लेकिन अगर आपातकाल या इमरजेंसी की स्थिति होती है तो किसी भी नजदीकी पुलिस स्टेशन में FIR दर्ज करवाई जा सकती है उसके बाद थानाधिकारी उसे सम्न्धित थाना क्षेत्र में करवाई के लिए ट्रान्सफर कर सकते है | साथ ही हमेशा जरुरी नहीं है कि आपको व्यक्तिगत या personally थाने में जाकर FIR दर्ज करवानी आवश्यक है | आपातकाल की स्थिति में कोई भी व्यक्ति एक phone call या email के जरिये भी FIR करवा सकता है |
कैसे करवाएं FIR –FIR दर्ज करवाते समय अपराध होने की तिथि और घटना स्थल का ब्योरेवार विवरण दिया जाना आवश्यक है वो भी विधिवत और उसके अलावा अगर आपको अपराधियों की पहचान है तो उस सम्न्धित चिन्ह भी FIR में लिखे और एक बार FIR रजिस्टर हो जाने के बाद उसकी एक प्रति प्राप्त करना नहीं भूले | उस पर अंकित आपका FIR नंबर जो है वो आपके future  reference के लिए आपको अपने पास सम्भाल कर रखना चाहिए |
पुलिस क्या करती है इसके बाद – एक आदर्श स्थिति में पुलिस ये करती है कि वो जितना जल्दी हो सके case की जाँच पड़ताल करती है और सभी गवाहों के बयान लेने और अन्य सारे कानूनी कारवाई करने के बाद FR अर्थात final report को तेयार करती है | अगर पुलिस अपनी जाँच में ये पाती है कि किसी case के लिए और उस पर कारवाई करने के लिए पर्याप्त सबूत और गवाहों की कमी है तो उस पर पुलिस उस पर किये जाने वाली कारवाई को रोक सकती है | और ऐसे में case दर्ज करवाने वाले को सूचित कर दिया जाता है |
लेकिन अगर पुलिस पाती है कि case में आगे बढाने के लिए पर्याप्त सबूत है तो उसकी final charge sheet जो है वो कोर्ट में दी जाती है और उसके बाद अपराधी का trial शुरू होता है |