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If Victim goes to register Complained in magistrate office (in Case) ?
1. जब पीड़ित न्यायाधीश के पास आपराधिक केस दर्ज करने बाबत् शिकायत लेकर जाता है तो क्या होता है?
आपराधिक मामलों के प्रभारी न्यायाधीश को मजिस्ट्रेट कहते हैं। भारत में मजिस्ट्रेट के विभिन्न प्रकार हैं। पुलिस के पास जाने के बजाय पीड़ित मजिस्ट्रेट के समक्ष शिकायत दर्ज करा सकता है। यदि पुलिस के पास पीड़ित पहले चला गया है फिर भी असंज्ञेय अपराध के मामलों में पुलिस इसे मजिस्ट्रेट को अग्रेषित करेगी। मजिस्ट्रेट को शिकायतकर्ता एवं गवाहों से पूछताछ करनी होगी।
मजिस्ट्रेट यह कर सकती हैः-
- ट्रायल प्रक्रिया को आरंम्भ कर सकती है। समन या वारंट जारी कर सकती है।
- पुलिस अथवा स्वयं द्वारा जांच (इन्क्वारी) संचालित कर सकती है।
- शिकायत को खारिज (रद्द) कर सकती है।
यदि मजिस्ट्रेट ने पुलिस को प्रारम्भिक जांच के आदेश दिये हैं तो पुलिस आपको इस जांच के दौरान गिरफ्तार कर सकती है। आप न्यायालय में प्रस्तुत नहीं होगें जब तक कि मजिस्ट्रेट इस बाबत् आदेश नहीं जारी कर देती।
मजिस्ट्रेट को उपरोक्त में से स्वविवेक से कुछ भी करने का अधिकार है। परन्तु यदि मामला अति गम्भीर है एवं सेशन न्यायालय द्वारा विचारणीय है तब उसे स्वयं ही मामले में जांच करनी होगी। वह इसके लिए पुलिस को निर्देश नहीं दे सकती। मजिस्ट्रेट को पीड़ित एवं गवाहों के बयान, अन्य दस्तावेज एवं स्वीकृति बयान जिन्हें अभियोजन पक्ष के अधिवक्ता उपयोग में लेंंगे की प्रतिलिपियॉं आपको उपलब्ध करानी होगी। तत्पश्चात् वह उस केस को प्रतिबद्ध (कमिट) करेगी।वह सरकारी अधिवक्ता (लोक अभियोजक) को नोटिस प्रेषित करेगी एवं सारे दस्तावेज सेशन न्यायालय को भेजेगा।
यदि मजिस्ट्रेट शिकायत को रद्द कर दे तो पीड़ित को इसे उच्च न्यायालय में चुनौती देने का अधिकार है। आपके पास उच्चतर न्यायालय में निर्णय संबंधी पैरवी करने का अधिकार है
2. क्या मजिस्ट्रेट मेरे विरूद्ध अपने आप केस शुरू कर सकता है?
हॉं, मजिस्ट्रेट स्वयं आपराधिक कार्यवाही प्रारम्भ कर सकती है। यदि उसे अपराध घटित होने की जानकारी मिल जाये। यदि मजिस्ट्रेट ने स्वयं केस आरम्भ किया है तो आपको अधिकार है कि मामले को विचारण हेतु किसी अन्य न्यायालय में स्थानान्तरित करवायें।
3. इस मामले में ट्रायल कैसे होगी?
- ट्रायल पूर्व औपचारिकताएंः- सामान्यतः आपको शिकायत इत्यादि की प्रतिलिपियां मजिस्ट्रेट द्वारा भेजे गये सम्मन्स के साथ संलग्न मिलेंगी। यदि मामला सेशन द्वारा ही विचारणीय है तो मजिस्ट्रेट सारी औपचारिकताएं पूर्ण होने के पश्चात् ही केस सेशन न्यायालय भेजेगी।
- परिवादी का साक्ष्यः- ऐसी ट्रायल में मजिस्ट्रेट पहले शिकायतकर्ता को अपने गवाह एवं साक्ष्य प्रस्तुत करने देगी।
- डिस्चार्ज/आरोपमुक्तिः- इस प्रक्रिया के दौरान आप आरोपमुक्ति का आवेदन दे सकते हैं। यदि मजिस्ट्रेट को यह लगे कि आपके विरूद्ध कोई मामला नहीं बनता तो वह आपको आरोपमुक्त कर देगी। वैसे भी, यदि शिकायतकर्ता को परीक्षित करने के पश्चात् यदि आपके विरूद्ध केस चलाने के पर्याप्त आधार न हों तो भी आपको आरोपमुक्त किया जा सकता है।
- आरोप विरचित करनाः- मजिस्ट्रेट आपके विरूद्ध आरोप विरचित करेगी एवं यह पूछेगी कि क्या आपको आरोप स्वीकार है। प्रति परीक्षणः- यदि आपको आरोप अस्वीकार है तो मजिस्ट्रेट आपके अधिवक्ता को परिवादी गवाहों से प्रति परीक्षण करने देगी।
- प्रति परीक्षा- अगर आप दोषी वकालत नहीं करती हैं, तो आप और आपके वकील अभियोजन पक्ष के गवाहों की प्रति परीक्षा कर सकती हैं I
- बचाव साक्ष्यः- इसके पश्चात् मजिस्ट्रेट आपको एवं आपके अधिवक्ता को अपने गवाह एवं साक्ष्य प्रस्तुत करने देगी, ताकि आप अपनी बेगुनाही साबित कर पाएं।
- निर्णय (जजमेन्ट):- तत्पश्चात् मजिस्ट्रेट यह निर्णय लेगी कि आप दोषी हैं अथवा बेगुनाह हैं। कृपया ध्यान रखें कि विचारण प्रक्रिया उन मामलों में जहां अपराध दो वर्ष अथवा कम कारावास से दण्डनीय है बिल्कुल अलग है। यदि आप ऐसे अपराध से आरोपित हैं जिसमें दो वर्ष अथवा कम के कारावास का प्रावधान हे तो विचारण की प्रक्रिया एक ‘समन’ केस की होगी। ‘समन’ केस की विचारण प्रक्रिया के बारे में अधिक जानकारी हेतु पढ़ें ।
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