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दहेज़ उत्पीडन का केस कैसे करें ? - IPC ki dhara 498a 323 504 506
आज के इस पोस्ट में हम बात करेंगे दहेज उत्पीड़न की यानी कि जो महिलाएं दहेज पीड़ित हैं वैसे तो 70 % केस झूठे होते है लेकिन हकीकत में कुछ महिलाये ऐसी भी हैं जिनके ससुरालीजन महिलाओं को दहेज मांगने केलिए तंग करते हैं वह महिलाएं किस तरह से कानूनी मदद ले सकती हैं किस तरह किस की कार्यवाही होती है और कितना समय लगता है यह सब हम इस इस पोस्ट में बात करेंगे
दहेज उत्पीड़न:-जब किसी महिला से उसके ससुरालीजन शादी के बाद दहेज की मांग करते हो और उस कारण उसे सताते हो या परेशान करते हैं या मारते-पीटते हो तो यह दहेज उत्पीड़न कहलाता है
अगर कोई महिला दहेज उत्पीड़न की शिकार हुई है तो वह माननीय न्यायालय में दहेज उत्पीड़न का मुकदमा दर्ज करा सकती है और अपने हक के लिए कानूनी लड़ाई लड़ सकती है
दहेज उत्पीड़न का मुकदमा 2 तरीके से किया जा सकता है,
1. नजदीकी थाने जाकर लिखित FIR करके
2. मजिस्ट्रेट के सामने शिकायत करके
1. नजदीकी थाने जाकर लिखित FIR करके:-
अब बात करते हैं
नंबर 1 की यानी स्टेट केस की, जब कोई महिला अपने ऊपर हो रहे अत्याचारों की शिकायत लेकर अपने नजदीकी थाने में जाती है और मामले की लिखित शिकायत करती है तब थाना प्रभारी यह मामला आईपीसी की धारा 498 ए के तहत दर्ज कर लेता है और मामले की जांच करता है,
पुलिस 3 साल के अंदर कोर्ट में चार्जशीट पेश करती है, यह पुलिस पर निर्भर करता है कि वह 4 सीट कितने समय के अंदर पेश कर पाती है इसका अधिकतम समय 3 वर्ष तक हो सकता है कोर्ट में चार्जशीट पेश हो जाने के बाद पारिवारिक कोर्ट मुकदमे की सुनवाई करने से पहले,अगर पीड़ित महिला का इरादा बदल गया हो और वह समझौता करना चाहती हो तो पारिवारिक कोर्ट फाइल को महिला के हित में फैसला लेते हुए फाइल
को मध्यस्थता केंद्र भेज देता है
2. मजिस्ट्रेट के सामने शिकायत करके:-अब बात करते हैं कंप्लेंट केस यानी जब कोई महिला अपने ऊपर हो रहे दहेज उत्पीड़न की शिकायत लेकर मजिस्ट्रेट के सामने जाती है तब मजिस्ट्रेट महिलाओं के बयानों के आधार पर मुकदमा दर्ज कर लेता है, के बाद कोर्ट फाइल को किसी भी प्रकार के समझौते के लिए फाइल को मध्यस्ता केंद्र भेज देता है
,मध्यस्ता केंद्र आरोपी को तारीख पर आने के लिए नोटिस भेजता है अगर आरोपी तारीख पर आकर समझौता कर लेता है तो यह केस यहीं खत्म हो जाता है और अगर आरोपी तारीख पर हाजिर नहीं होता है तो फिर दोबारा से मध्यस्ता केंद्र आरोपी को नोटिस भेजता है और जब मध्यस्ता केंद्र को यह भरोसा हो जाता है कि आरोपी मध्यस्ता केंद्र में हाजिर नहीं हो रहा है तो
वह 3 महीने के पश्चात फाइल अपनी रिपोर्ट लगाकर फाइल को पारिवारिक कोर्ट में वापस भेज देता है पारिवारिक कोर्ट में फाइल आ जाने के बाद, पारिवारिक कोर्ट आरोपी को संबंध भेजता है, सम्मन के बाद आरोपी कोर्ट आकर सबसे पहले अपनी जमानत कराता है उसके बाद कोर्ट किसी वकील की सहायता से अपना पक्ष रखता है और फिर कोर्ट में केस का ट्रायल शुरू हो जाता है जिसमें कई बहस होती हैं सबूतों को पेश किया जाता है गवाहों को पेश किया जाता है और बाद में जजमेंट होता है
इस तरह के केस में अमूमन 2 से 3 साल तक लग जाते हैं कभी-कभी यह केस 4 साल तक चलते हैं यह कोर्ट की कार्यवाही पर निर्भर होता है
अब बात करते हैं कि किस करने कि इन दोनों तरीकों में कौन सा तरीका सबसे अच्छा है तो दोस्तों मैं कहूंगा की तरीके दोनों अच्छे हैं लेकिन दोनों तरीके अलग-अलग परिस्थितियों में दर्ज कराए जा सकते हैं जैसे:-
पीड़ित महिला थाने जाकर FIR करती है तब पुलिस मामले जांच करती है,और पुलिस गवाहों को तलाशती है और सबूतों को ढूंढती है,अगर पुलिस को गवाह और सबूत नहीं मिलते हैं तो पुलिस 4 सीट में फाइनल रिपोर्ट लगाकर भेज देती है इसका मतलब होता है की केस सबूतों के अभाव में किसको निरस्त किया जाता है और अगर पुलिस को कुछ सबूत या गवाह हासिल हैं तो पुलिस माननीय न्यायालय में चार्जशीट पेश करती है
अब बात करते हैं कंप्लेंट केस की कंप्लेंट केस तब किया जाता है जब किसी महिला के पास सबूत मौजूद हो क्योंकि कंप्लेंट केस करते समय महिला को ही सपोर्ट के पेश करने पड़ते हैं,
अब तो आप समझ ही गए होंगे की केस का कौन सा तरीका ज्यादा सही होता है और कौन सा तरीका कब अप्लाई करना चाहिए उम्मीद करता हूं यह पोस्ट आपको पसंद आया होगा उम्मीद करता हूं आपके सारे कंफ्यूजन दूर हो गए होंगे और
आपको केस से संबंधित जरूरी मालूमात हो गई होगीअगर फिर भी कोई कंफ्यूजन है तो आप मुझे कमेंट बॉक्स में पूछ सकते हैं, आप हमें यूट्यूब चैनल पर भी फॉलो कर सकते हैं
हमारा YouTube चैनल लिंक है
https://www.youtube.com/channel/UCmJSrmuF0_2PWEXxm8_kMmg
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आप मुझे कमेंट बॉक्स में जरूर बताएं कि आपको इस पोस्ट में क्या पसंद नहीं आया है
यदि किसी महिला को दहेज उत्पीड़न को लेकर सताया या तंग किया जाएगा या कहा जाएगा तो उस पर आईपीसी की धारा 498 ए के तहत मामला दर्ज होगा इसके तहत आरोपी पर दोष सिद्ध होने पर अधिकतम 3 वर्ष तक का कारावास की सजा प्लस जुर्माना हो सकता है साथ ही यह केस गैरजमानती है
लेकिन सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद अब इसमें जमानत हो जाती है
जब कोई महिला दहेज का मुकदमा करती है तो आईपीसी की धारा 498-ए के साथ 323 504 और 506 की भी धारा लगा
सकती है इन अन्य धाराओं के बारे में आप अलग से पढ़ सकते हैं या आप हमारे ब्लॉग या हमारे YouTube चैनल पर भी सर्च कर सकते हैं
2. मजिस्ट्रेट के सामने शिकायत करके
1. नजदीकी थाने जाकर लिखित FIR करके:-
अब बात करते हैं
नंबर 1 की यानी स्टेट केस की, जब कोई महिला अपने ऊपर हो रहे अत्याचारों की शिकायत लेकर अपने नजदीकी थाने में जाती है और मामले की लिखित शिकायत करती है तब थाना प्रभारी यह मामला आईपीसी की धारा 498 ए के तहत दर्ज कर लेता है और मामले की जांच करता है,
पुलिस 3 साल के अंदर कोर्ट में चार्जशीट पेश करती है, यह पुलिस पर निर्भर करता है कि वह 4 सीट कितने समय के अंदर पेश कर पाती है इसका अधिकतम समय 3 वर्ष तक हो सकता है कोर्ट में चार्जशीट पेश हो जाने के बाद पारिवारिक कोर्ट मुकदमे की सुनवाई करने से पहले,अगर पीड़ित महिला का इरादा बदल गया हो और वह समझौता करना चाहती हो तो पारिवारिक कोर्ट फाइल को महिला के हित में फैसला लेते हुए फाइल
को मध्यस्थता केंद्र भेज देता है
2. मजिस्ट्रेट के सामने शिकायत करके:-अब बात करते हैं कंप्लेंट केस यानी जब कोई महिला अपने ऊपर हो रहे दहेज उत्पीड़न की शिकायत लेकर मजिस्ट्रेट के सामने जाती है तब मजिस्ट्रेट महिलाओं के बयानों के आधार पर मुकदमा दर्ज कर लेता है, के बाद कोर्ट फाइल को किसी भी प्रकार के समझौते के लिए फाइल को मध्यस्ता केंद्र भेज देता है
,मध्यस्ता केंद्र आरोपी को तारीख पर आने के लिए नोटिस भेजता है अगर आरोपी तारीख पर आकर समझौता कर लेता है तो यह केस यहीं खत्म हो जाता है और अगर आरोपी तारीख पर हाजिर नहीं होता है तो फिर दोबारा से मध्यस्ता केंद्र आरोपी को नोटिस भेजता है और जब मध्यस्ता केंद्र को यह भरोसा हो जाता है कि आरोपी मध्यस्ता केंद्र में हाजिर नहीं हो रहा है तो
वह 3 महीने के पश्चात फाइल अपनी रिपोर्ट लगाकर फाइल को पारिवारिक कोर्ट में वापस भेज देता है पारिवारिक कोर्ट में फाइल आ जाने के बाद, पारिवारिक कोर्ट आरोपी को संबंध भेजता है, सम्मन के बाद आरोपी कोर्ट आकर सबसे पहले अपनी जमानत कराता है उसके बाद कोर्ट किसी वकील की सहायता से अपना पक्ष रखता है और फिर कोर्ट में केस का ट्रायल शुरू हो जाता है जिसमें कई बहस होती हैं सबूतों को पेश किया जाता है गवाहों को पेश किया जाता है और बाद में जजमेंट होता है
इस तरह के केस में अमूमन 2 से 3 साल तक लग जाते हैं कभी-कभी यह केस 4 साल तक चलते हैं यह कोर्ट की कार्यवाही पर निर्भर होता है
अब बात करते हैं कि किस करने कि इन दोनों तरीकों में कौन सा तरीका सबसे अच्छा है तो दोस्तों मैं कहूंगा की तरीके दोनों अच्छे हैं लेकिन दोनों तरीके अलग-अलग परिस्थितियों में दर्ज कराए जा सकते हैं जैसे:-
पीड़ित महिला थाने जाकर FIR करती है तब पुलिस मामले जांच करती है,और पुलिस गवाहों को तलाशती है और सबूतों को ढूंढती है,अगर पुलिस को गवाह और सबूत नहीं मिलते हैं तो पुलिस 4 सीट में फाइनल रिपोर्ट लगाकर भेज देती है इसका मतलब होता है की केस सबूतों के अभाव में किसको निरस्त किया जाता है और अगर पुलिस को कुछ सबूत या गवाह हासिल हैं तो पुलिस माननीय न्यायालय में चार्जशीट पेश करती है
अब बात करते हैं कंप्लेंट केस की कंप्लेंट केस तब किया जाता है जब किसी महिला के पास सबूत मौजूद हो क्योंकि कंप्लेंट केस करते समय महिला को ही सपोर्ट के पेश करने पड़ते हैं,
अब तो आप समझ ही गए होंगे की केस का कौन सा तरीका ज्यादा सही होता है और कौन सा तरीका कब अप्लाई करना चाहिए उम्मीद करता हूं यह पोस्ट आपको पसंद आया होगा उम्मीद करता हूं आपके सारे कंफ्यूजन दूर हो गए होंगे और
आपको केस से संबंधित जरूरी मालूमात हो गई होगीअगर फिर भी कोई कंफ्यूजन है तो आप मुझे कमेंट बॉक्स में पूछ सकते हैं, आप हमें यूट्यूब चैनल पर भी फॉलो कर सकते हैं
हमारा YouTube चैनल लिंक है
https://www.youtube.com/channel/UCmJSrmuF0_2PWEXxm8_kMmg
अगर आपको यह पोस्ट पसंद आया है तो पोस्ट को लाइक कीजिए दूसरों को भी शेयर कीजिए ताकि लोग इस जानकारी हासिल कर सके, अगर यह पोस्ट आपको पसंद नहीं आया है तो
आप मुझे कमेंट बॉक्स में जरूर बताएं कि आपको इस पोस्ट में क्या पसंद नहीं आया है
यदि किसी महिला को दहेज उत्पीड़न को लेकर सताया या तंग किया जाएगा या कहा जाएगा तो उस पर आईपीसी की धारा 498 ए के तहत मामला दर्ज होगा इसके तहत आरोपी पर दोष सिद्ध होने पर अधिकतम 3 वर्ष तक का कारावास की सजा प्लस जुर्माना हो सकता है साथ ही यह केस गैरजमानती है
लेकिन सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद अब इसमें जमानत हो जाती है
जब कोई महिला दहेज का मुकदमा करती है तो आईपीसी की धारा 498-ए के साथ 323 504 और 506 की भी धारा लगा
सकती है इन अन्य धाराओं के बारे में आप अलग से पढ़ सकते हैं या आप हमारे ब्लॉग या हमारे YouTube चैनल पर भी सर्च कर सकते हैं
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3 Comments
But sir agra koi mahila fake case karti hai toh uske uper kya kaarwai hoti hai
ReplyDeleteJhute kesh karti h to isse ase bache
ReplyDeleteHii sir main bhut prashan hu meri wife n mera pura gharwalek khilaf jhutaa case 2019main kiya tha police na bhut prashan kiya aor ab vakil prahan kr rha sir bhut grib Insan hu khuch sahi rastha dekhiya
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