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दहेज़ उत्पीडन के केस का दुरूपयोग ? Misuse of IPC ki dhara 498a
अगर पत्नी चाहे तो कैसे अपने पति को कानून के जाल में फंसा सकती है
IPC की धारा 498 A :- धारा 498 A का प्रावधान
किया गया है इसे दहेज निरोधक कानून कहा गया है अगर किसी महिला को दहेज के लिए
मानसिक ,शारीरिक या
फिर अन्य तरह से प्रताड़ित किया जाता है तो महिला की शिकायत पर इस धारा के तहत केस
दर्ज किया जाता है|
इसे संघीय अपराध की श्रेणी में रखा गया है
आए दिन हम खबर पढ़ते हैं कि दहेज प्रताड़ना का केस झूठा
साबित हुआ भारत में दहेज हत्या एवं प्रताड़ना से महिलाओं को बचाने के लिए 1983 में भारतीय दंड संहिता में धारा 498 अ को जोड़ा गया इसका उद्देश्य दहेज जैसी सामाजिक बुराई एवं
ससुराल में होने वाले अत्याचारों से महिलाओं को संरक्षण देना था इस धारा के
अंतर्गत महिला की केवल एक शिकायत पर बिना किसी अन्य विवेचना के पुलिस पति सहित
अन्य ससुराल वालों पर कार्यवाही कर देती है
साथ ही यह गैर जमानती अपराध है दहेज के लिए ससुराल में प्रताड़ित करने वाले तमाम लोगों को आरोपी बनाया जा सकता है
धारा 498 A के हिसाब से सजा- इस मामले में दोषी पाए जाने पर अधिकतम 3 साल तक कैद की सजा का प्रावधान है वहीं अगर शादीशुदा महिला की मौत संदिग्ध परिस्थितियों में होती है और यह मौत शादी के 7 साल के दौरान होती है तो पुलिस आईपीसी की धारा 304 बी के तहत केस दर्ज करती है
अदालतों
में आज भी 498 के कई मुकदमे लंबित है और कई ऐसे मामले सामने
आए हैं जिसमें है माना गया है कि इस धारा का महिला पक्ष द्वारा दुरुपयोग हुआ है यह
कानून अपराधिक है परंतु इसका स्वरूप परिवारिक है पारिवारिक किसी भी झगड़े को दहेज
प्रताड़ना के विभाग के रूप में परिवर्तित करना अत्यंत ही सरल है एक विवाहिता की
केवल एक शिकायत पर यह मामला दर्ज होता है परिवार के सभी सदस्यों को अभियुक्त के
रूप में नामजद कर दिया जाता है और सभी अभियुक्तों को जेल में भेज दिया जाता है
क्योंकि यह एक गैरजमानती संघीय और असंयोजनीय अपराध है
नोट-सुप्रीम कोर्ट ने इस धारा के अंतर्गत की गई गिरफ्तारी पर रोक लगाई है
सुशील कुमार शर्मा बनाम भारत संघ और अन्य 2005 के मुकदमे में सर्वोच्च अदालत ने IPC की धारा ‘498 अ’ के दुरुपयोग को लीगल टेरेरिस्म भी कहा है
नोट-सुप्रीम कोर्ट ने इस धारा के अंतर्गत की गई गिरफ्तारी पर रोक लगाई है
कई पुरुष इस धारा
में मुकदमा लड़ रहे हैं और अदालतों के चक्कर काट रहे हैं लेकिन उन्हें राहत नहीं
मिल पा रही है माननीय सुप्रीम कोर्ट ने भी कुछ प्रकरणों में धारा 498अ के दुरुपयोग की बात कही है
सुशील कुमार शर्मा बनाम भारत संघ और अन्य 2005 के मुकदमे में सर्वोच्च अदालत ने IPC की धारा ‘498 अ’ के दुरुपयोग को लीगल टेरेरिस्म भी कहा है
यह बात सच है की
महिला उत्पीड़न और दहेज के खिलाफ एक सख्त कानून की जरूरत हमें है लेकिन इस कानून
का दुरुपयोग रोकने के लिए भी कुछ कदम उठाए जाने चाहिए आज जितनी ही पुरुष धारा का
शिकार हुए हैं और उनका जीवन खराब हुआ है
कई संगठन इस धारा
के दुरुपयोग के खिलाफ हक की लड़ाई लड़ रहे हैं
भारत सरकार ने भी
फर्जी मुकदमों की बढ़ती संख्या को देखते हुए धारा 498 अ में संशोधन की
आवश्यकता को समझा है लेकिन फिलहाल इस दिशा में ठोस कदम नहीं उठाए गए हैं हालांकि
हाल ही में
सुप्रीम कोर्ट ने
इस धारा के अंतर्गत की गई गिरफ्तारी पर रोक लगाई है
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